आदित्यह्दयस्त्रोत पाठ

आदित्य हृदय स्तोत्र सूर्य देव से संबंधित है। इस स्तोत्र का पाठ सूर्य देव को प्रसन्न व उनकी कृपा पाने के लिए किया जाता है।
आदित्य हृदय स्तोत्र का उल्लेख रामायण में वाल्मीकि जी द्वारा किया गया है जिसके अनुसार इस स्तोत्र को ऋषि अगस्त्य ने भगवान श्री राम को रावण पर विजय प्राप्त करने के लिए दिया था। खासकर रविवार के दिन इस उपाय को जरूर करना चाहिए।

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Last updated Sun, 30-Jan-2022 Hindi-gujarati
पूजा के लाभ
  • सूर्य को मजबूत करने के लिए आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करना सर्वोत्तम माना जाता है।
  • यदि इस स्तोत्र का पाठ प्रतिदिन सुबह नियमित रूप से किया जाए तो मनुष्य के जीवन में बहुत जल्दी ही सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिलते हैं।
  • इस पाठ को करने से जातक को की तरह के लाभ प्राप्त होते हैं और जीवन की समस्याओं से निजात मिलती है।

पूजाविधि के चरण
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संकल्प
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  • अत्राद्य महामांगल्यफलप्रदमासोत्तमे मासे, अमुक मासे ,अमुक पक्षे,अमुक तिथौ , अमुक वासरे ,अमुक नक्षत्रे , ( जो भी संवत, महीना,पक्ष,तिथि वार ,नक्षत्र हो वही बोलना है )........ गोत्रोत्पन्न : ........... सपरिवारस्य सर्वारिष्ट निरसन पूर्वक सर्वपाप क्षयार्थं, दीर्घायु शरीरारोग्य कामनया धन-धान्य-बल-पुष्टि-कीर्ति-यश लाभार्थं, श्रुति स्मृति पुराणतन्त्रोक्त फल प्राप्तयर्थं, सकल मनोरथ सिध्यर्थ आदित्य हृदयस्तोत्र पाठ व्रत पूजा करिष्ये।
  • विनियोग :-
    ॐ अस्य आदित्यहृदयस्तोत्रस्यागस्त्यऋषिरनुष्टुप्छन्दः
    आदित्यहृदयभूतो भगवान् ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविजतया
    ब्रह्मविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः।

    ध्यानम्-
    नमस्सवित्रे जगदेक चक्षुसे,
    जगत्प्रसूति स्थिति नाशहेतवे,
    त्रयीमयाय त्रिगुणात्म धारिणे,
    विरिञ्चि नारायण शङ्करात्मने।।

    ऋष्यादिन्यास :-
    ॐ अगस्त्यऋषये नमः, शिरसि।
    अनुष्टुप्छन्दसे नमः, मुखे।
    आदित्यहृदयभूतब्रह्मदेवतायै नमः, हृदि।
    ॐ बीजाय नमः, गुह्ये।
    रश्मिमते शक्तये नमः, पादयोः।
    ॐ तत्सवितुरित्यादिगायत्रीकीलकाय नमः, नाभौ।

    करन्यास:-
    इस स्तोत्रके अङ्गन्यास और करन्यास तीन प्रकारसे किये जाते हैं।
    केवल प्रणवसे, गायत्री-मन्त्रसे अथवा 'रश्मिमते नमः' इत्यादि छ: नाम-मन्त्रोंसे।
    यहाँ नाम-मन्त्रोंसे किय जानेवाले न्यासका प्रकार बताया जाता है :-
    ॐ रश्मिमते अङ्गुष्ठाभ्यां नमः।
    ॐ समुद्यते तर्जनीभ्यां नमः।
    ॐ देवासुरनमस्कृताय मध्यमाभ्यां नमः।
    ॐ विवस्वते अनामिकाभ्यां नमः।
    ॐ भास्कराय कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
    ॐ भुवनेश्वराय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।

    हृदयादि अंगन्यास :-
    ॐ रश्मिमते हृदयाय नमः।
    ॐ समुद्यते शिरसे स्वाहा।
    ॐ देवासुरनमस्कृता शिखायै वषट्।
    ॐ विवस्वते कवचाय हम।
    ॐ भास्कराय नेत्रत्रयाय वौषट ॐ भुवनेश्वराय अस्त्राय फट ।
    इस प्रकार न्यास करके निम्नाङ्कित मन्त्रसे भगवान् सूर्य का ध्यान एवं नमस्कार करना चाहिये
    ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
    तत्पश्चात् 'आदित्यहृदय' स्तोत्रका पाठ करना चाहिये।

    ।। अथ आदित्य हृदय स्तोत्रम ।।
    ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्।
    रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्॥ १॥
    दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्।
    उपगम्याब्रवीद्राममगस्त्यो भगवांस्तदा॥ २ ॥
    राम राम महाबाहो शृणु गुह्यं सनातनम्।
    येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे॥ ३ ॥
    आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम।
    जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम्॥ ४ ॥
    सर्वमङलमाङ्गल्यं सर्वपापप्रणाशनम्।
    चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम् ॥ ५ ॥
    रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्।
    पूजयस्व विवस्वन्तं भास्कर भुवनेश्वरम्॥ ६ ॥
    सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः।
    एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः॥ ७ ॥
    एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः।
    महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपाम्पतिः॥ ८ ॥
    पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुतो मनुः।
    वायुर्वह्निः प्रजाः प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः॥ ९ ॥
    आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान् ।
    सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकरः॥१०॥
    हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिमरीचिमान्।
    तिमिरोन्मथनः शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान् ॥११॥
    हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनोऽहस्करो रविः।
    अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शङ्खः शिशिरनाशनः॥१२॥
    व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजुःसामपारगः।
    धनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवङ्गमः॥१३॥
    आतपी मण्डली मृत्युः पिङ्गलः सर्वतापनः।
    कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोद्भवः॥१४॥
    नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः।
    तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते॥१५॥
    नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः।
    ज्योतिर गणानां पतये दिनाधिपतये नमः ॥१६॥
    जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः।
    नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः॥१७॥
    नम उग्राय वीराय सारङ्गाय नमो नमः।
    नमः पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते॥१८॥
    ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूरायादित्यवर्चसे।
    भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः॥१९॥
    तमोजाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने।
    कृतजनाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः॥२०॥
    तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे।
    नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे॥२१॥
    नाशयत्येष वै भूतं तमेव सृजति प्रभुः।
    पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः ॥२२॥
    एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः।
    एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम्॥२३॥
    देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च।
    यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमप्रभुः॥२४॥
    एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च।
    कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव॥२५॥
    पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम्।
    एतत्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ॥२६॥
    अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि।
    एवमुक्त्वा ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम्॥२७॥
    एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत् तदा।
    धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान्॥२८॥
    आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान्।
    त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान्॥२९॥
    प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागमत्।
    गर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत्॥३०॥
    अरविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमनाः परमं प्रहृष्यमाणः।
    निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति॥३१॥
    श्री वाल्मीकीये रामायणे युद्धकाण्डे, अगस्त्यप्रोक्तमादित्यहृदयस्तोत्रं सम्पूर्णम्॥
पूजन सामग्री
  • गंगाजल और पानी - आवश्यकता अनुसार
वर्णन
सूर्य ग्रह को सरकारी नौकरी, उच्च पद, प्रतिष्ठा, मान-सम्मान आदि का कारक माना जाता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में सूर्य की स्थिति प्रबल होती है। ऐसे जातक की कुंडली में सरकारी नौकरी के योग बनते हैं। कुंडली में सूर्य ग्रह को मजबूत करने के लिए ज्योतिष विज्ञान में कई उपाय बताए गए हैं। इनमें आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ सबसे कारगर उपाय है। सूर्योदय के समय आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।  ऐसा करने से आपकी कुंडली में सरकारी नौकरी के योग बनेंगे।